सावन 'मास' में 'मांस' से परहेज़ ज़रूरी क्यों?


हर साल जब सावन का महीना आता है, तो कई घरों में एक अनोखा बदलाव दिखने लगता है—थाली से मांसाहारी व्यंजन गायब हो जाते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसा क्यों होता है? क्या यह केवल धार्मिक मान्यता है या इसके पीछे कुछ ठोस वैज्ञानिक वजहें भी हैं?

इस लेख में हम जानेंगे कि सावन में मांस न खाने की परंपरा के पीछे छिपे वैज्ञानिक तथ्यों, धार्मिक विश्वासों और मानसिक शांति के पीछे के कारण को ।

धार्मिक पहलू: 

सावन, भगवान शिव को समर्पित पवित्र महीना माना जाता है। इस दौरान शिवभक्त उपवास रखते हैं, शिवलिंग पर जल अर्पित करते हैं और अधिकतर सात्विक जीवनशैली अपनाते हैं। 

हिंदू धर्म में भोजन को तीन श्रेणियों में बाँटा गया है — सात्विक, राजसिक और तामसिक।

सात्विक भोजन: शुद्ध, हल्का और शरीर-मन को शांत रखने वाला
तामसिक भोजन: भारी, उत्तेजक और क्रोध या आलस्य को बढ़ाने वाला

मांसाहार को तामसिक भोजन में गिना जाता है। यही कारण है कि शिवभक्त इस महीने में मांस, शराब, लहसुन-प्याज़ जैसी चीज़ों से दूर रहते हैं ताकि ध्यान और भक्ति में बाधा न आए।

वैज्ञानिक कारण जानिए -

सावन में लगातार बारिश और नमी के कारण खाने-पीने की चीज़ें जल्दी खराब हो जाती हैं, खासकर मांस और अंडा जैसे प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थ।

संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है -

इस मौसम में वातावरण में बैक्टीरिया और वायरस ज़्यादा सक्रिय हो जाते हैं। मांस जल्दी सड़ता है और उससे फूड प्वाइज़निंग, उल्टी, दस्त, पेट दर्द जैसी समस्याएँ हो सकती हैं।


पाचन तंत्र समस्या की समस्या होती है -

बारिश के कारण शरीर की पाचन क्षमता थोड़ी धीमी हो जाती है। ऐसे में भारी और तैलीय भोजन करने से पेट में गैस, अपच या एसिडिटी की समस्या हो सकती है।

डॉक्टर्स भी सलाह देते हैं कि मानसून के समय हल्का, सुपाच्य और ताज़ा खाना ही खाया जाए ताकि शरीर स्वस्थ रहे।


सावन न केवल शारीरिक सफाई का समय है, बल्कि यह आंतरिक अनुशासन और मानसिक शुद्धता का भी प्रतीक है। पूजा-पाठ, व्रत और ध्यान का उद्देश्य केवल धार्मिक नहीं बल्कि मानसिक शांति भी है।

मांस में मौजूद कुछ तत्व शरीर में अतिरिक्त गर्मी और उत्तेजना उत्पन्न करते हैं, जो मन की शांति में बाधा बन सकते हैं।
सात्विक भोजन से तनाव कम होता है और मन अधिक स्थिर रहता है।

परहेज़ सभी के लिए ज़रूरी नहीं -

यह ज़रूरी नहीं कि हर व्यक्ति को मांस से परहेज़ करना ही पड़े। जो लोग इसका परहेज नही रख सकते हैं उन्हें इस चीज का ख्याल रखना चाहिए कि माँस साफ़-सफाई, ताज़गी और सीमित मात्रा के साथ इस्तेमाल किया जा रहा है। सावन में मांसाहार से परहेज़ करना महज़ परंपरा नहीं, बल्कि स्वास्थ्य, संयम और आत्मचिंतन का अवसर है।

यह महीना हमें अपने शरीर को डिटॉक्स करने, खुद पर नियंत्रण रखने और एक सात्विक जीवन अपनाने की प्रेरणा देता है।
इसमें धर्म और विज्ञान दोनों की उपस्थिति है। 

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