Vat Savitri Vrat 2025: क्यों मनाया जाता है वट सावित्री व्रत और क्यों बांधती हैं महिलाएं बरगद के पेड़ पर धागा? जानिए आसान भाषा में पूरी कहानी


हमारे देश में कई तरह के व्रत-त्योहार होते हैं, लेकिन कुछ ऐसे होते हैं जिनका रिश्ता सीधे-सीधे भावनाओं, रिश्तों और भरोसे से जुड़ा होता है। वट सावित्री व्रत भी ऐसा ही एक खास दिन है, जो हर साल ज्येष्ठ महीने की अमावस्या को मनाया जाता है। साल 2025 में यह व्रत 26 मई, सोमवार को रखा जाएगा।

इस दिन सुहागन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र, अच्छे स्वास्थ्य और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए निर्जला व्रत रखती हैं, यानी पूरे दिन बिना खाना-पानी के रहती हैं। वे खासतौर पर बरगद के पेड़ (वट वृक्ष) की पूजा करती हैं और उसके चारों ओर धागा लपेटते हुए परिक्रमा करती हैं। यह सिर्फ एक परंपरा नहीं, बल्कि प्यार, समर्पण और निष्ठा का प्रतीक है।

अब सवाल ये उठता है कि ये व्रत आख़िर शुरू कैसे हुआ? बरगद का पेड़ ही क्यों? और महिलाएं इसमें धागा क्यों बांधती हैं?

व्रत के पीछे की कथा 

इस व्रत की शुरुआत महाभारत काल से मानी जाती है, जब एक राजकुमारी सावित्री ने अपने पति सत्यवान को मौत के मुंह से वापस लाकर दुनिया के सामने मिसाल कायम की।

सावित्री एक बुद्धिमान, साहसी और संस्कारी राजकुमारी थीं। उन्होंने खुद सत्यवान नाम के वनवासी राजकुमार को अपना पति चुना। जब उन्होंने यह निर्णय लिया, तब उन्हें यह भविष्यवाणी पहले से ही पता थी कि सत्यवान केवल एक साल ही जीवित रहेंगे। सोचिए, अगर आज के ज़माने में किसी को ये पता चल जाए कि जिससे शादी कर रहे हैं, वो एक साल में चला जाएगा – तो क्या कोई शादी करेगा? शायद नहीं। लेकिन सावित्री ने किया, क्योंकि उनका प्रेम सच्चा था और वो सिर्फ जीवन के सुख में नहीं, दुख में भी साथ निभाना चाहती थीं।

एक साल बाद, जब वह दिन आया, सत्यवान जंगल में लकड़ी काट रहे थे और अचानक बेहोश होकर गिर पड़े – उनकी मृत्यु हो गई। सावित्री ने उनका शव बरगद के पेड़ के नीचे रखा और वहीं बैठकर उपवास और तपस्या शुरू कर दी। जब यमराज (मृत्यु के देवता) सत्यवान की आत्मा लेने आए, तो सावित्री ने उन्हें रोका, उनसे तर्क किए, उन्हें अपने प्रेम और समर्पण से प्रभावित किया।

आख़िरकार, यमराज भी हार मान गए और बोले – “सावित्री, तुम्हारा प्रेम और तुम्हारा संकल्प इतना सच्चा है कि मैं सत्यवान को जीवनदान देता हूं।”

बस तभी से यह परंपरा शुरू हुई कि विवाहित महिलाएं सावित्री की तरह अपने पति की लंबी उम्र और सुखमय जीवन के लिए यह व्रत करती हैं।

बरगद का पेड़ क्यों है इतना खास?

अब बात करते हैं वट वृक्ष यानी बरगद के पेड़ की। ये कोई आम पेड़ नहीं है। हिंदू धर्म में बरगद के पेड़ को देववृक्ष कहा गया है। मान्यता है कि इसमें तीनों मुख्य देवताओं का वास होता है:

जड़ों में – ब्रह्मा जी,

तने में – विष्णु जी,

और पत्तों-शाखाओं में – शिव जी।


यानी यह एक पेड़ नहीं, बल्कि साक्षात त्रिदेव का निवास है। बरगद का पेड़ सालों-साल जीवित रहता है और सबसे ज्यादा छाया देता है। जैसे यह पेड़ स्थिर और अडिग रहता है, वैसे ही विवाह का रिश्ता भी मजबूत और टिकाऊ होना चाहिए – यही संदेश इस वृक्ष के माध्यम से मिलता है।

क्यों बांधती हैं महिलाएं बरगद पर धागा?

व्रत के दौरान जब महिलाएं बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं, तो वे उसकी सात बार परिक्रमा करती हैं और हर चक्कर में कच्चा धागा लपेटती हैं। ये धागा कोई आम धागा नहीं, यह एक आस्था का बंधन है।

इसका मतलब होता है – पति के साथ सात जन्मों तक साथ निभाने का संकल्प।
जैसे शादी में सात फेरे होते हैं, वैसे ही यह भी एक तरह से सात फेरों जैसा वचन है।

यह रस्म सिर्फ धार्मिक परंपरा नहीं है, बल्कि एक भावनात्मक जुड़ाव है जो पति-पत्नी के रिश्ते की गहराई को दर्शाती है।


बरगद के पेड़ से जुड़े हेल्थ बेनिफिट्स भी हैं

बहुत कम लोग जानते हैं कि बरगद का पेड़ सिर्फ धार्मिक कारणों से ही नहीं, बल्कि सेहत के लिए भी बहुत फायदेमंद होता है। व्रत के दिन जब महिलाएं उपवास तोड़ती हैं, तो वे बरगद की कली खाती हैं। इसमें एंटीऑक्सिडेंट्स और रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले गुण होते हैं, जो शरीर के लिए अच्छे माने जाते हैं।


अगर पास में बरगद का पेड़ न हो तो क्या करें?

हर जगह बरगद का पेड़ मिलना मुश्किल होता है। ऐसे में महिलाएं वट वृक्ष की एक छोटी सी टहनी या डाल को लेकर मिट्टी में गाड़ लेती हैं और घर में ही उसकी पूजा करती हैं। इससे परंपरा भी निभती है और श्रद्धा में कोई कमी नहीं आती। 

सावित्री की कहानी आज के दौर में भी उतनी ही प्रासंगिक है – जहाँ रिश्ते जल्दी टूट जाते हैं, वहाँ यह व्रत हमें रिश्तों की अहमियत और गहराई को समझने की प्रेरणा देता है।

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