नवरात्रि का चौथा दिन: माँ कुष्मांडा की पूजा का महत्व, कथा और मंदिर।

नवरात्रि के चौथे दिन का विशेष महत्व माँ कुष्मांडा के पूजन से जुड़ा है। यह दिन उस दिव्य माँ को समर्पित है, जिन्होंने अपनी मधुर मुस्कान से इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की रचना की। "कूष्माण्ड" का अर्थ है—“कू” यानी छोटा, “ऊष्म” यानी ऊर्जा और “अण्ड” यानी ब्रह्माण्ड। वह देवी, जिन्होंने अपनी कोमल मुस्कान से इस संसार को जन्म दिया और जीवन की रोशनी फैलाई।

माँ कुष्मांडा का दिव्य रूप:

माँ कुष्मांडा को सृष्टि की मूल शक्ति के रूप में पूजा जाता है। जब चारों ओर घना अंधकार था और कोई अस्तित्व नहीं था, तब माँ ने अपनी हल्की मुस्कान से इस संसार में प्रकाश और जीवन का संचार किया। उनकी अष्टभुजाओं में समाहित शक्ति से यह ब्रह्माण्ड बना, और उन्हें "अष्टभुजा देवी" भी कहा जाता है। माँ कुष्मांडा न सिर्फ इस ब्रह्माण्ड की रचयिता हैं, बल्कि अपने भक्तों के सभी कष्टों, दुखों और बीमारियों को भी हरने वाली देवी हैं। उनकी उपासना से जीवन में संतुलन, शांति और समृद्धि का आगमन होता है।

पौराणिक कथा:

एक प्राचीन कथा के अनुसार, जब सृष्टि में केवल घोर अंधकार था और कोई भी अस्तित्व नहीं था, तब माँ कुष्मांडा ने अपनी मुस्कान से इस ब्रह्माण्ड की रचना की थी। उन्होंने सूर्य के गर्भ में वास किया और अपनी तेजस्वी मुस्कान से ब्रह्माण्ड को जन्म दिया था। सूरज की प्रचंड ऊर्जा को धारण करने वाली देवी कुष्मांडा ने अपने भक्तों के लिए इस संसार को जीवनदायिनी प्रकाश से भर दिया। इसलिए उनका यह रूप ऊर्जा और शक्ति का प्रतीक माना जाता है। जो भक्त माँ की उपासना करते हैं, उन्हें जीवन में कभी ऊर्जा की कमी महसूस नहीं होती।

हमारे जीवन से जुड़ा भाव:

माँ कुष्मांडा का यह रूप हमें सिखाता है कि जीवन चाहे कितना भी कठिन हो, हमें अपने भीतर की ऊर्जा और सकारात्मकता को बनाए रखना चाहिए। जैसे माँ ने अपनी मुस्कान से अंधकार को दूर किया, वैसे ही हमें भी अपने जीवन की कठिनाइयों का सामना करते हुए मुस्कुराना चाहिए। आज के भागदौड़ भरे जीवन में जहाँ तनाव, चिंता और हताशा हावी हो जाती है, माँ कुष्मांडा हमें यह सन्देश देती हैं कि हमारी मुस्कान में ही सृजन की शक्ति छिपी है। उनका आशीर्वाद हमें हर परिस्थिति में आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है और जीवन में नई उमंग का संचार करता है।

माँ कुष्मांडा के प्रमुख मंदिर:

1. माँ कुष्मांडा मंदिर, वाराणसी - वाराणसी की पावन भूमि पर स्थित यह मंदिर नवरात्रि के दौरान विशेष रूप से जागृत रहता है।

2. आद्य काली मंदिर, कोलकाता - इस मंदिर में माँ कुष्मांडा की पूजा श्रद्धा और विश्वास से की जाती है, जहाँ भक्त उनकी कृपा के लिए आते हैं।

3. अष्टभुजा देवी मंदिर, विंध्याचल - उत्तर प्रदेश में स्थित यह मंदिर माँ कुष्मांडा के अष्टभुजा रूप को समर्पित है, जहाँ भक्तों की असीम श्रद्धा और भक्ति का संगम होता है।

4. कुष्मांडा देवी मंदिर, हिमाचल प्रदेश - हिमाचल की वादियों में स्थित यह मंदिर देवी की शक्ति का अद्वितीय केंद्र है, जहाँ भक्त अपने जीवन के सभी कष्टों से मुक्ति पाने आते हैं।

माँ कुष्मांडा की उपासना से हमें यह अनुभव होता है कि हमारे जीवन में कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों न हों, माँ की कृपा से हर अंधकार दूर हो सकता है। उनकी उपासना से हमें न सिर्फ आंतरिक शक्ति मिलती है, बल्कि जीवन में नई रोशनी और उमंग का आगमन होता है। उनकी मुस्कान में छिपी सृष्टि की रचना हमें सिखाती है कि जीवन में मुस्कुराना कितना ज़रूरी है।

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