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Showing posts from October, 2024

Karwa Chauth Vrat Katha: अखंड सौभाग्य देने वाली कथा, इसके बिना अधूरा है करवा चौथ का व्रत

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हर साल कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को सुहागिन महिलाओं का पर्व करवा चौथ मनाया जाता है। इस बार करवा चौथ रविवार, 20 अक्टूबर को है। इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र, सुख-समृद्धि और अच्छी सेहत की कामना के लिए सूर्योदय से चंद्रोदय तक बिना पानी पिए और बिना खाना खाए व्रत करती हैं। धार्मिक मान्यता है कि इस व्रत को करने से महिलाओं को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद मिलता है। करवा चौथ के दिन व्रत रखने वाली महिलाएं सुबह भगवान सूर्य को जल अर्पित करके व्रत का संकल्प लेती हैं और शाम को चंद्रमा के दर्शन कर अर्घ्य देकर व्रत पूरा करती हैं। इस व्रत में गणेशजी, चौथ माता, सूर्यदेव और चंद्रदेव की पूजा की जाती है। इसके बाद कथा सुनने या पढ़ने का विधान है। बिना कथा सुने यह व्रत अधूरा माना जाता है। करवा चौथ का महत्व हिंदू पंचांग के अनुसार, हर महीने दो पक्ष होते हैं—शुक्ल और कृष्ण पक्ष। इन दोनों पक्षों में दो चतुर्थी तिथियां आती हैं, जिन्हें चौथ कहते हैं। यह तिथि भगवान गणेश को समर्पित होती है, क्योंकि चतुर्थी के स्वामी गणेशजी हैं। मान्यता है कि इस दिन गणेशजी की पूजा से सारे दुख और कष्ट दूर होते ह...

नवरात्रि के नवें दिन: माँ सिद्धिदात्री की पूजा का महत्व

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नवरात्रि के नवें दिन माँ दुर्गा के सिद्धिदात्री स्वरूप की पूजा की जाती है। माँ सिद्धिदात्री वह देवी हैं, जो अपने भक्तों को सभी प्रकार की सिद्धियाँ प्रदान करती हैं। ‘सिद्धिदात्री’ नाम से ही स्पष्ट है कि वे सभी सिद्धियों की दात्री हैं। इनकी आराधना से भक्त को ज्ञान, शक्ति और सभी प्रकार की उपलब्धियों की प्राप्ति होती है। माँ सिद्धिदात्री का यह स्वरूप भक्तों के जीवन में पूर्णता और संतोष का प्रतीक है। माँ सिद्धिदात्री का स्वरूप माँ सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली देवी हैं। उनके एक हाथ में कमल पुष्प और दूसरे हाथ में गदा होती है। शेष दो हाथों में वे शंख और चक्र धारण करती हैं। उनका वाहन सिंह है, जो उनके साहस और पराक्रम का प्रतीक है। माँ सिद्धिदात्री का यह रूप अत्यंत प्रभावशाली और शक्ति का प्रतीक है, जो अपने भक्तों को सभी बाधाओं से मुक्त कर उन्हें सिद्धियों से सम्पन्न करती हैं। माँ सिद्धिदात्री की कथा पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान विष्णु और भगवान शिव सहित सभी देवताओं ने माँ सिद्धिदात्री की कठोर तपस्या की थी, ताकि उन्हें अष्टसिद्धियों की प्राप्ति हो सके। माँ सिद्धिदात्री ने प्रसन्न होकर स...

नवरात्रि के आठवें दिन: माँ महागौरी की पूजा का महत्व

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नवरात्रि के आठवें दिन माँ दुर्गा के महागौरी स्वरूप की पूजा की जाती है। माँ महागौरी को शांति, पवित्रता और कल्याण की देवी माना जाता है। उनके स्वरूप को देख ऐसा प्रतीत होता है जैसे उनका शरीर चाँदी के समान श्वेत है, इसी कारण उन्हें महागौरी कहा जाता है। माँ महागौरी का यह रूप असीम शांति और निर्मलता का प्रतीक है, जो भक्तों के सभी दुखों और परेशानियों को हर लेता है। माँ महागौरी का स्वरूप माँ महागौरी चार भुजाओं वाली देवी हैं। उनके एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे हाथ में डमरू होता है। शेष दो हाथों से वे अभय और वरमुद्रा में अपने भक्तों को आशीर्वाद देती हैं। उनका वाहन वृषभ (बैल) है, जो उनकी शुद्धता और धैर्य का प्रतीक है। उनका यह रूप अत्यंत शांत और सौम्य होता है, जो भक्तों के मन में शांति और संतुलन का संचार करता है। माँ महागौरी की कथा पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव को पाने के लिए माँ पार्वती ने घोर तपस्या की थी। कई वर्षों तक कठिन तप करने से उनका शरीर पूरी तरह से काला हो गया था। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने उन्हें स्वीकार किया और उन्हें गंगा के जल से स्नान कर शुद्ध किया, जिससे उनका र...

नवरात्रि के सातवें दिन: माँ कालरात्रि की पूजा का महत्व

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नवरात्रि के सातवें दिन माँ दुर्गा के कालरात्रि स्वरूप की पूजा की जाती है। माँ कालरात्रि को अत्यंत भयानक और शक्तिशाली देवी माना जाता है, जो अंधकार और नकारात्मक शक्तियों का नाश करती हैं। उनके इस रूप से भक्तों को हर प्रकार के भय से मुक्ति मिलती है। माँ कालरात्रि का यह स्वरूप उनके शत्रुओं के लिए भयानक होता है, लेकिन भक्तों के लिए यह करुणा और रक्षा का प्रतीक है। माँ कालरात्रि का स्वरूप माँ कालरात्रि का रूप अत्यंत विकराल है, लेकिन वह हमेशा शुभफल देने वाली मानी जाती हैं। उनका रंग काला है, और उनके बाल बिखरे हुए होते हैं। उनकी चार भुजाओं में एक हाथ में लोहे का काँटा और दूसरे में खड्ग है। शेष दो हाथों से वे भक्तों को वरदान और अभय प्रदान करती हैं। उनका वाहन गधा है, और उनकी नासिका से अग्नि की ज्वाला निकलती रहती है। उनका यह रूप बुराई के अंत का प्रतीक है और उनकी उपस्थिति से सभी प्रकार के नकारात्मक शक्तियों का विनाश होता है। माँ कालरात्रि की कथा पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब असुर रक्तबीज ने देवताओं को परास्त कर दिया, तब माँ कालरात्रि ने प्रकट होकर उसे समाप्त किया। रक्तबीज की शक्ति यह थी कि ...

नवरात्रि के छठे दिन : माँ कात्यायनी की पूजा का महत्व

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नवरात्रि के छठे दिन माँ दुर्गा के कात्यायनी स्वरूप की पूजा की जाती है। माँ कात्यायनी को शक्ति और साहस की देवी माना जाता है।  प्राचीन कथाओं के अनुसार, महर्षि कात्यायन ने घोर तपस्या करके माँ दुर्गा को प्रसन्न किया और उनकी कृपा से माँ ने उनके घर जन्म लिया था। इसी कारण उन्हें कात्यायनी कहा जाता है। माँ कात्यायनी का यह रूप बहुत ही दिव्य और भव्य है, जो भक्तों को असुरों से मुक्त करता है और उनकी रक्षा करता है। माँ कात्यायनी का स्वरूप माँ कात्यायनी चार भुजाओं वाली देवी हैं। उनके एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में कमल का पुष्प है। शेष दो हाथों से वे भक्तों को आशीर्वाद देती हैं। इस रूप में माँ का वाहन सिंह है, जो उनके साहस और शक्ति का प्रतीक है। उनका यह रूप बहुत ही वीर और शक्तिशाली माना जाता है, जो बुराई पर विजय प्राप्त करने के लिए प्रकट हुआ था। माँ कात्यायनी की कथा पौराणिक कथा के अनुसार, महिषासुर राक्षस ने अपने बल से तीनों लोकों में आतंक फैला दिया था। उसकी अत्याचारों से देवता भी हार मान चुके थे। तब देवी ने कात्यायनी रूप में प्रकट होकर महिषासुर का संहार किया और देवताओं को उसके भय ...

नवरात्रि का पाँचवा दिन: माँ स्कंदमाता की पूजा का महत्व और कथा

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नवरात्रि के पाँचवे दिन माँ दुर्गा के स्कंदमाता स्वरूप की पूजा की जाती है। माँ स्कंदमाता का नाम उनके पुत्र स्कंद (भगवान कार्तिकेय) के कारण पड़ा है। उनके इस रूप में माँ के गोद में स्कंद (कार्तिकेय) बैठे रहते हैं, जो शक्ति और युद्ध के देवता माने जाते हैं। माँ स्कंदमाता की पूजा से न केवल भक्त को माँ का आशीर्वाद मिलता है, बल्कि उनके पुत्र भगवान स्कंद की कृपा भी प्राप्त होती है। माँ स्कंदमाता का स्वरूप माँ स्कंदमाता चार भुजाओं वाली देवी हैं, जिनके एक हाथ में कमल का पुष्प है और दूसरे हाथ में भगवान स्कंद विराजमान हैं। माँ सिंह पर सवार होती हैं और उनकी पूजा शांति, सौम्यता और शक्ति की प्रतीक मानी जाती है। उनका यह स्वरूप न केवल माता के वात्सल्य का प्रतीक है, बल्कि यह दिखाता है कि वे अपने भक्तों की हर कठिनाई से रक्षा करती हैं। माँ स्कंदमाता की कथा एक पौराणिक कथा के अनुसार, जब भगवान तारकासुर राक्षस ने देवताओं पर अत्याचार करना शुरू किया, तो भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र स्कंद ने देवताओं की रक्षा के लिए जन्म लिया। माँ स्कंदमाता ने अपने पुत्र को युद्ध में भेजा था और तारकासुर का वध कर देवताओं को म...

नवरात्रि का चौथा दिन: माँ कुष्मांडा की पूजा का महत्व, कथा और मंदिर।

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नवरात्रि के चौथे दिन का विशेष महत्व माँ कुष्मांडा के पूजन से जुड़ा है। यह दिन उस दिव्य माँ को समर्पित है, जिन्होंने अपनी मधुर मुस्कान से इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की रचना की। "कूष्माण्ड" का अर्थ है—“कू” यानी छोटा, “ऊष्म” यानी ऊर्जा और “अण्ड” यानी ब्रह्माण्ड। वह देवी, जिन्होंने अपनी कोमल मुस्कान से इस संसार को जन्म दिया और जीवन की रोशनी फैलाई। माँ कुष्मांडा का दिव्य रूप: माँ कुष्मांडा को सृष्टि की मूल शक्ति के रूप में पूजा जाता है। जब चारों ओर घना अंधकार था और कोई अस्तित्व नहीं था, तब माँ ने अपनी हल्की मुस्कान से इस संसार में प्रकाश और जीवन का संचार किया। उनकी अष्टभुजाओं में समाहित शक्ति से यह ब्रह्माण्ड बना, और उन्हें "अष्टभुजा देवी" भी कहा जाता है। माँ कुष्मांडा न सिर्फ इस ब्रह्माण्ड की रचयिता हैं, बल्कि अपने भक्तों के सभी कष्टों, दुखों और बीमारियों को भी हरने वाली देवी हैं। उनकी उपासना से जीवन में संतुलन, शांति और समृद्धि का आगमन होता है। पौराणिक कथा: एक प्राचीन कथा के अनुसार, जब सृष्टि में केवल घोर अंधकार था और कोई भी अस्तित्व नहीं था, तब माँ कुष्मांडा ने अपनी मुस्क...

नवरात्रि का तीसरा दिन: माँ चंद्रघंटा की पूजा का महत्व, कथा और मंदिर

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नवरात्रि के तीसरे दिन माँ दुर्गा के चंद्रघंटा स्वरूप की पूजा की जाती है। उनके मस्तक पर घंटे जैसी आकृति वाले अर्धचंद्र के कारण उन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है। इस दिन उनकी पूजा से साहस, आत्मविश्वास और शांति मिलती है। माँ चंद्रघंटा दुष्टों का नाश करती हैं और अपने भक्तों को हर संकट से मुक्त करती हैं। माँ चंद्रघंटा का स्वरूप माँ चंद्रघंटा के दस हाथ होते हैं, जिनमें अस्त्र-शस्त्र होते हैं, और वे सिंह पर सवार रहती हैं। उनका स्वरूप अत्यंत शक्तिशाली होने के साथ ही सौम्य और शांति से भरा हुआ है। उनके घंटे की ध्वनि बुरी शक्तियों का नाश करती है, और भक्तों को सुख-शांति प्रदान करती है। माँ चंद्रघंटा की कथा जब देवी पार्वती का भगवान शिव से विवाह होना था, तब भगवान शिव अपनी बारात में भूत-प्रेतों और विचित्र जीवों के साथ आए। यह दृश्य देखकर पार्वती के परिवारजन घबरा गए। तब माता ने चंद्रघंटा रूप धारण कर शिवजी को शांत किया और विवाह का आयोजन सहजता से संपन्न कराया। इस रूप में माता ने सभी को संतुलन और शांति का संदेश दिया। पूजा का महत्व माँ चंद्रघंटा की पूजा से जीवन में साहस, आत्मविश्वास और मानसिक शांति मिलती है। भक...

नवरात्रि का दूसरा दिन: मां ब्रह्मचारिणी की प्रेरक कथा और जीवन में उनके महत्व के बारे में जानें...

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नवरात्रि का त्योहार आते ही पूरा वातावरण आध्यात्मिक ऊर्जा से भर उठता है, और इस पवित्र उत्सव के दूसरे दिन की विशेष बात यह है कि इसे मां ब्रह्मचारिणी को समर्पित किया जाता है। अब नाम सुनकर ही समझ में आ जाता है कि यह देवी ब्रह्मचर्य और तपस्या की देवी हैं। उनकी कहानी इतनी प्रेरणादायक है कि जो भी सुनता है, उसे लगता है कि जीवन में संयम और साधना से हम कुछ भी हासिल कर सकते हैं। मां ब्रह्मचारिणी की कथा  मां ब्रह्मचारिणी, जो देवी पार्वती का ही अवतार हैं, भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए असाधारण तप करती हैं। कहते हैं कि उन्होंने सालों तक बिना खाए-पिए ही तपस्या की थी। जिसके बाद भागवान शिव प्रसन्न हो कर माता को अपनी पत्नी के तौर पर स्वीकार कर लिया था। शायद यही वजह है कि आज भी उनकी पूजा करने से हमें जीवन में कठिनाईयों से लड़ने और सफलता पाने का संबल मिलता है। मां का शांत और साधक स्वरूप मां ब्रह्मचारिणी का स्वरूप जितना शांत है, उतना ही प्रेरणादायक भी, उनके एक हाथ में कमंडल और दूसरे में जपमाला है—जिसे संयम का प्रतिक माना जाता है। उनकी उपासना करने से मनोबल और आत्मविश्वास मिलता है, जो आ...

नवरात्रि के पहले दिन की देवी: माँ शैलपुत्री की पूजा का खास महत्व

नवरात्रि के पहले दिन माँ दुर्गा के शैलपुत्री रूप की पूजा होती है। शैलपुत्री का मतलब होता है, पर्वत की पुत्री। वो पर्वतराज हिमालय की बेटी हैं और शिवजी की पत्नी, जिन्हें हम पार्वती के नाम से भी जानते हैं। उनका ये रूप बेहद शांत, सौम्य और धैर्य से भरा हुआ है।  माँ शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल है और बाएं हाथ में कमल का फूल। वो वृषभ (बैल) पर सवार होती हैं। उनके इस रूप का खास महत्व है, क्योंकि ये शक्ति, साहस और आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत का प्रतीक है। नवरात्रि की शुरुआत में इन्हें पूजने का मतलब है अपने जीवन की हर शुरुआत में आत्मविश्वास और धैर्य को शामिल करना। माँ शैलपुत्री का स्वरूप माँ शैलपुत्री के इस रूप को देखकर आपको एकदम शांत और शक्ति का एहसास होता है। उनके एक हाथ में त्रिशूल होता है और दूसरे हाथ में कमल का फूल। वो बैल यानी वृषभ पर सवार होती हैं। ऐसा कहा जाता है कि वो हिमालय की बेटी हैं और भगवान शिव की पत्नी पार्वती के रूप में पूजी जाती हैं।  उनका ये रूप हमें सिखाता है कि चाहे जीवन में कितनी भी कठिनाई आए, अगर हम में धैर्य और साहस है, तो हम हर बाधा को पार कर सकते हैं। माँ ...

शारदीय नवरात्रि 2024: 3 अक्टूबर से शुरू, उपवास करते समय इन बातों का रखें खास ख्याल

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नवरात्रि का समय देवी दुर्गा की पूजा और उनके नौ रूपों की उपासना का होता है। इस दौरान लोग नौ दिन तक उपवास रखते हैं, जो धार्मिक और सेहत के लिए दोनों तरह से महत्वपूर्ण माना जाता है। अगर आप भी नवरात्रि के उपवास रख रहे हैं, तो कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है ताकि आपकी सेहत ठीक रहे और उपवास सफल हो। 1. सही और संतुलित आहार लें उपवास के दौरान शरीर में जरूरी पोषक तत्वों की कमी न हो, इसके लिए ऐसा खाना खाएं जो पौष्टिक हो। जैसे फल, दूध, दही, मखाना, कुट्टू का आटा और साबूदाना खाएं। तली-भुनी चीजों से बचें क्योंकि इससे सेहत बिगड़ सकती है। हल्का और सेहतमंद खाना खाने से आपको ऊर्जा मिलती रहेगी और आप स्वस्थ रहेंगे। 2. पानी खूब पिएं उपवास के समय शरीर को पानी की जरूरत ज्यादा होती है। दिनभर पानी पीते रहें ताकि शरीर हाइड्रेटेड रहे और शरीर के अंदर की गंदगी बाहर निकलती रहे। आप नारियल पानी, नींबू पानी और छाछ भी पी सकते हैं, ये आपकी ऊर्जा को बनाए रखते हैं। 3. आराम और योग करें उपवास के समय शरीर को ज्यादा आराम की जरूरत होती है। नियमित रूप से योग और ध्यान करने से मन शांत रहता है और शरीर में ताजगी बनी रहती है। इससे न ...